हाई ब्लड प्रेशर {high blood pressure (hypertension)} क्या है डॉक्टर से जानिए–

भारत में आज के समय और कई जरूरी शोधों को देखते हुए पाया गया है कि हमारे देश में लगभग 8 करोड़ लोग हाई ब्लड प्रेशर से ग्रसित हैं। वैज्ञानिकों ने इसे समय से पहले मृत्यू होने का वैश्विक कारण माना है, साथ ही कई खतरनाक बीमारियों जैसे- दिल की विफलता, दिल का दौरा, किडनी की विफलता और लकवा (paralysis) का कारण बनता है। ऐसे में सबसे जरूरी है कि हाई-ब्लड प्रेशर [high blood pressure (hypertension)] क्या है, डॉक्टर से जानिए–

ब्लड-प्रेशर क्या है…

वह बल (“pressure”) जो रक्त को शरीर में पहुँचाने के लिए धमनियों (arteries) की दीवारों पर लगता है, उसे रक्तचाप (blood-pressure) कहा जाता है। यह बल अगर सामान्य से तेज होता है तो उसे हाई ब्लड-प्रेशर कहते हैं और इसके उलट अगर यह बल सामान्य से धीमा होता है तो उसे निम्न ब्लड-प्रेशर (Low blood-pressure) कहते है।  

नार्मल ब्लड प्रेशर कितना होना चाहिए ?

ब्लड-प्रेशर (रक्तचाप) को पारा के मिलीमीटर (mmHg) से मापा जाता है और दो रूपों में मापा जाता है-

सिस्टोलिक दबाव (systolic pressure) – वह प्रेशर जिससे आपका दिल रक्त को बाहर निकालकर शरीर में पहुँचाता है।

डायस्टोलिक दबाव (diastolic pressure) – दो धड़कनों के बीच वह प्रेशर जिसके दौरान ह्रदय रक्त से भरता है।

उदहारण के लिए अगर आपका ब्लड-प्रेशर 140 / 90mmHg है, तो इसका मतलब है कि आपकी ब्लड-प्रेशर जाँच में 140 mmHg सिस्टोलिक दबाव है और 90 mmHgडायस्टोलिक दबाव है। अगर आपको हाई बीपी की शिकायत अति है तो यह बहुत ज़रूरी है की आप जानें की बीपी कैसे चेक करते हैं

सामान्य रक्तचाप (ब्लड-प्रेशर) 120 / 80mmHg माना जाता है।किसी भी व्यक्ति का बीपी हर समय एक जैसा नहीं होता, यह समय-समय पर बदलता रहता है। इसिलिए 120/80 mm Hg के आस-पास के स्तर को सामान्य स्तर माना जाता है। अगर आपका बीपी जाँच में 140/90mmHgआया है, वह उच्च रक्त-चाप (High blood pressure) माना जाएगा।

हाई ब्लड प्रेशर कितना होता है?

हाई बीपी यानि उच्च रक्तचाप तब होता है जब आपके रक्त का दबाव सामान्य से अधिक अस्वस्थ स्तर तक बढ़ जाता है। जैसा कि कहा गया है 140/90 mm Hg से ज्यादा का बीपी हाई बीपी कहलाता है।

हाई बीपी की परेशानी 45 साल तक की उम्र में महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में अधिक होती है, और 65 की उम्र तक आते-आते इसके उलट महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा अधिक हाई बीपी की परेशानी होती है। मधुमेह के रोगियों में भी हाई बीपी की समस्या होने की आशंका उनसे अधिक होती है जिन्हें मधुमेह नहीं  है।

प्रेगनेंसी में हाई बीपी का स्तर थोड़ा अलग बताया गया है और प्रेगनेंसी में हाई बीपी रहना माँ और बचे दोनों के लिए बहुत खतरनाक हो सकता है।

हाई बीपी (ब्लड-प्रेशर) होने के लक्षण..

आमतौर पर हाई बीपी के लक्षण जल्दी सामने नहीं आते इसी कारण से इसे साइलेंट किलर भी कहा जाता है। ऐसा भी हो सकता है कि कुछ लोगों में लक्षण दिखाई ही नहीं देते। जब स्थिति गंभीर हो जाती है तब लक्षण दिखाई देते हैं, लेकिन उसमें ज्यादा समय यानि कई साल तक लग जाते हैं। इसके अलावा कई ऐसे लक्षण हैं जो गंभीर हाई बीपी के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं-

  • सिर दर्द
  • सांस लेने में परेशानी
  • नाक से खून आना
  • सिर चकराना
  • छाती में दर्द
  • कभी-कभी आँखों के आगे अंधेरा आ जाना
  • थकान
  • दिल धड़कने में असामान्यता

उपरोक्त में से किसी भी लक्षण के सामने आने पर तुरंत ही डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए। हालांकि ये लक्षण हाई बीपी के हर मरीज को दिखाई दें ऐसे जरूरी नहीं, लेकिन इन लक्षणों का इंतजार करना आपको प्राणघातक स्थिति में डाल सकता है।

हाई बीपी (ब्लड-प्रेशर) होने से क्या होता है..

अक्सर लोग हाई बीपी और उसके लक्षणों को सामान्य मानकर जी रहे होते हैं, लेकिन यह एक सामान्य बीमारी न होकर एक ऐसी आधारभूत समस्या है जो शरीर में मौजूद अन्य परेशानी के साथ मिलकर आपके जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। हाई बीपी की समस्या ऊपर लिखे सभी लक्षणों के साथ शरीर के अन्य अंगों पर भी प्रभाव डालती है। क्या शरीर के अन्य अंगों पर हाई बीपी से पड़ने वाले प्रभाव-

  • रक्त वाहिकाओं (blood vessels) पर प्रभाव

स्वस्थ वाहिकाएँ लचीली (flexible), मजबूत और लोचदार (elastic) होती हैं, ताकि उनसे रक्त पोषक तत्वों और ऑक्सीजन लेकर स्वतंत्र रुप से बह सके और शरीर के बाकी हिस्सों में पहुँचा सके। हाई बीपी आपकी नसों की अंदरूनी परत की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाता है। आपके आहार की वसा (फैट) जब आपके रक्तप्रवाह में मिल जाती है तो वह नसों की अंदरूनी परत पर जम जाती है जिससे नसें कम लोचदार (less elastic) हो जाती हैं और जो आपके पूरे शरीर में रक्त प्रवाह को सीमित कर देती हैं। साथ ही सालों से चला आ रहा हाई बीपी, कोलेस्ट्रोल के साथ मिलकर रक्त वाहिकओं को संकुचित कर देता है।

  • दिल (heart) पर प्रभाव

दिल की नसों (“coronary arteries”) में वसा जम जाने के कारण वे संकुचित और क्षतिग्रस्त हो जाती हैं जिससे रक्त दिल तक स्वतंत्र रूप से नहीं पहुँच पाता और इसके परिणामस्वरूप सीने में दर्द, धड़कन में अनियमितता और दिल का दौरा जैसी परेशानियाँ आ सकती हैं। साथ ही हाई बीपी आपके दिल को शरीर के बाकी हिस्सों में रक्त पहुँचाने के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए मजबूर करता है। इससे आपके दिल का हिस्सा (बांया वेंट्रिकल (left ventricle)) मोटा हो जाता है। जिससे दिल का दौरा, दिल की विफलता और अचानक मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।

  • दिमाग पर प्रभाव

हमारा दिमाग सुचारू रूप से चलेगा या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस तक रक्त पौष्टिक मात्रा में पहुँच रहा है या नहीं। दिमाग तक पहुँचने वाली पौष्टिक रक्त की मात्रा जब अनियमित हो जाती है तो transient ischemic attack (TIA) एक मिनीस्ट्रोक (ministroke), हो सकता है। साथ ही आगे चलकर लकवा या फिट्स हो सकते हैं।

  • किडनी पर प्रभाव

किडनी हमारे रक्त से बेकार पदार्थों और पानी को अलग करके शरीर से बाहर निकाल देती हैं, इस प्रक्रिया में स्वस्थ रक्त वाहिकाओं की जरूरत होती है। हाई बीपी आपकी किडनी की इसी कार्यप्रणाली में रुकावट ला सकता है या नुकसान पहुँचा सकता है। इसके अलावा किडनी की अन्य समस्या जैसे गुर्दे की सिकुड़न (ग्लोमेरुलोस्केलेरोसिस, “glomerulosclerosis’)) और किडनी की विफलता (kidney fail) हो सकती है।

इन परेशानियों से बचने के लिए सही हाई बीपी के लिए डाइट और बीपी कम करने के उपाय का इस्तेमाल करें।

हाई बीपी (ब्लड-प्रेशर) होने के कारण

क्या हैं वे स्वास्थ्य समस्याएं जिन्हें हाई बीपी का कारण माना गया है-

  • किडनी की बीमारियाँ/समस्याएं
  • मोटापा
  • धूम्रपान
  • परिवार में किसी सदस्य का हाई बीपी का इतिहास
  • मघुमेह
  • लंबे समय से चला आ रहा किडनी का इंफेक्शन (संक्रमण)
  • ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (obstructive sleep apnoea) जैसी समस्या
  • किडनी में ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस जैसी समस्या जिसमें उसकी छोटी इकाई नेफ्रोन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
  • किडनी में रक्त की आपूर्ति करने वाली रक्त वाहिकाओं का संकुचित हो जाना
  • थायरॉयड जैसी हार्मोन समस्याएं
  • ल्यूपस
  • अधिवृक्क ग्रंथि के रोग (adrenal gland diseases)

वे निश्चित दवाएं जो हाई बीपी का कारण हो सकती हैं-

  • गर्भनिरोधक गोलियाँ
  • स्टेरॉइड्स
  • दर्दनिवारक दवाएँ (NSAIDs), जैसे इबुप्रोफेन और नेप्रोक्सन
  • खांसी और फ्लू के इलाज की कुछ दवाएं
  • शराबयुक्त कुछ हर्बल उपचार

ये ऐसी दवाएं हो सकती हैं जो डॉक्टर द्वारा किसी निश्चित इलाज के लिए कुछ समय के लिए निर्धारित की जाती हैं, ऐसा हो सकता है कि इन्हें छोड़ने के बाद आपका बीपी सामान्य हो जाए।

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