डायलिसिस : प्रक्रिया, खर्च, साइड इफेक्ट्स

किडनी हमारे शरीर में विभिन्न अम्ल-क्षारों, विषाक्त पदार्थों और पानी की मात्रा का संतुलन बनाए रखने का काम करती है। किडनी के काम करने की इस जटिल प्रक्रिया से हमारा जीवन सुचारू रूप से चलता है। लेकिन जब किसी कारण से किडनी अपने इस काम को करने की गति धीमी कर दे या बंद कर दे तो स्थिति जान पर बन जाती है। उस प्राणघातक स्थिति को किडनी की विफलता (Kidney failure) कहा जाता है, इस स्थिति में डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। क्या होती है डायलिसिस और उसकी प्रक्रिया जानें-

गुर्दे (किडनी) की खराबी से निजात पाने का अब तक कोई पक्का इलाज तो खोजा नहीं जा सका है लेकिन इसके नकारात्मक प्रभावों और लक्षणों को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है। यह संभंव हो जाता है विशेषज्ञों के इलाज, कुछ हद तक खान-पान के परहेज से, लेकिन इनके बावजूद भी बीमारी आगे बढ़े तो प्राण बचाने के लिए और मरीज को स्वस्थ रखने के लिए डायलिसिस और किडनी प्रत्यारोपण (Kidney transplant) के लिए तैयार होना चाहिए।

इन दोनों ही प्रक्रियाओं की जरूरत किडनी की विफलता यानि CKD के अंतिम चरण पर पड़ती है। किडनी के बहुत से मरीजों को इन सवालों के जवाब जानने की इच्छा होती है कि, क्या है CKD के मरीजों के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया डायलिसिस, इसे क्यों किया जाता है, इसकी जरूरत कब पड़ती है, इसमें खर्च कितना आता है और इससे शरीर पर कोई नकारात्मक प्रभाव तो नहीं पड़ता आदि। जानिए इन सभी के जवाब-

क्या होती है डायलिसिस (dialysis) की प्रक्रिया-

 डायलिसिस जिसे हिंदी में अपोहन कहा जाता है, रक्त को मशीनों के माध्यम से साफ करने की एक विधि है। किडनी विफलता के इलाज के लिए डायलिसिस प्रक्रिया का प्रयोग सन् 1940 से चला आ रहा है। नेशनल किडनी फाउंडेशन (National Kidney Foundation) के अनुसार, अंतिम चरण की किडनी की खराबी तब होती है जब किडनी केवल 10 से 15 प्रतिशत तक ही काम कर रही होती है।इस प्रक्रिया की अधिकतर जरूरत CKD के उन मरीजों को पड़ती  है, जिन्हे मधुमेह (Diabetes) या उच्च रक्तचाप (High blood-pressure) हो।

आमतौर पर डायलिसिस सप्ताह में 3 बार किया जाता है और इसे करने में लगभग 4 घंटे लगते हैं। इसकी जरूरत जब पड़ती है तब किडनी क्षतिग्रस्त होने के कारण रक्त में विषाक्त पदार्थों, अम्ल-क्षारों और पानी की मात्रा का संतुलन नहीं बना पाती। बढ़े हुए पदार्थों की यह मात्रा शरीर के लिए प्राणघातक सिद्ध हो सकती है। इसी बात को ध्यान में रख कर विशेषज्ञ CKD के मरीजों के लिए डायलिसिस की प्रक्रिया को अपनाते हैं।

कब होती है किडनी के मरीज को डायलिसिस(dialysis) की जरूरत-

सामान्य तौर पर CKD के मरीजों को डायलिसिस की जरूरततब पड़ती है और जब किडनी लगभग 85 प्रतिशत तक खराब हो चुकि होती हैं तब किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है। रक्त परीक्षण की जाँच में रक्त में अधिक मात्रा में बेकार पदार्थों का पता लगे या रक्त में यूरिया, नाइट्रोजन की मात्रा और क्रिएटिनिन मात्रा में बढ़ोत्तरी दिखाई दे तोआपको भी डायलीसिस की जरूरत पड़ सकती है। इसके अलावा इसकी जरूरत आपके विशेषज्ञ को तब लग सकती है जब आपकी किडनी लगभग 80 से 90 प्रतिशत काम करना बंद कर देती है। सामान्य तौर पर मरीज केवल मूत्र संबंधी असमान्यताओं को ही किडनी विफलता का लक्षण मान लेते हैं। लेकिन यह धारणा सरासर गलत है। असल में किडनी का काम शरीर के भीतरी वातावरण को संतुलित रखना है और अगर किडनी क्षतिग्रस्त हो गई है तो जाहिर तौर पर वह इस काम को नहीं कर पाएगी जिससे शरीर के दूसरे अंगों जैसे- दिल, लीवर, फोफड़े, दिमाग आदि पर भी गलत असर पड़ेगा। इसलिए केवल को मूत्र संबंधी विषमताओं के लक्षणों केमरीज को डायलिसिस की जरूरत है इसका पता कुछ निर्धारित लक्षणों से लगता है।

लक्षण जो बताते हैं कि मरीज को डायलिसिस की जरूरत है-

  • जी मिचलाना, उल्टी, भूख न लगना
  • पैरों और टखनों में सूजन, और खुजली
  • मांसपेशियों में ऐंठन
  • सांस लेने में समस्या
  • अत्यधिक कमजोरी आना औरवजन घटाना
  • रक्त में यूरिया, क्रिएटिनिन और पोटेशियम की मात्रा का बढ़ जाना
  • नींद आना (drowsiness), बेहोशी, या गंभीरता में कोमा की स्थिति हो जाना
  • किडनी विफलता के कारण दिल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है
  • फेफड़ों में पानी भर जाना
  • मूत्र उत्पादन कम हो जाना (400 मिली. प्रतिदिन)

कितने प्रकार की होती है, डायलिसिस (dialysis)

डायलिसिस (dialysis) की प्रक्रिया को मुख्य तौर पर दो भागों में बाँटा गया है। हीमोडायलिसिस (Hemodialysis) और पेरिटोनियल डायलिसिस (Peritoneal dialysis) की प्रक्रिया। क्या हैं डायलिसिस के ये दोनों प्रकार विस्तार से जानिए-

हीमोडायलिसिस(Hemodialysis)

हीमोडायलिसिस (खून का डायलिसिस) को,डायलिसिस का सबसे आम और सरल रूप माना जाता है। इसमें शरीर से खराब रक्त निकाला जाता है और फिर उसे नकली किडनी (Artificial kidney, hemodialyzer) के माध्यम से साफ करके वापस शरीर में पहुँचाया जाता है।

डायलिसिस में रक्त को साफ करने के लिए शरीर में से रक्त 200 से 400 मिली. प्रतिमिनट के हिसाब से निकाला जाता है। इसका प्रवाह इतना होता है कि हाथ या पैरों की नसों से नहीं निकाला जा सकता इसलिए पहले डॉक्टर मरीज की सर्जरी कर एक प्रवेश द्वार (entrance point) बनाता है जिसे vascular access भी कहा जाता है।

ये प्रवेश द्वार सामान्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-

एवी फिस्टूला (AV fistula)-

यह डायलिसिस में सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला प्रवेश बिंदु है। इसे धमनी और शिरा (Artery and vein) को जोड़कर बनाया जाता है। इस सर्जरी के बाद डायलिसिस का काम शुरू करने में 2-3 महीने लगते हैं।यह डायलिसिस करने के लिए सबसे अच्छा विकल्प है क्योंकि इसमें संक्रमण का खतरा कम होता है और अगर इसकी उचित देखभाल की जाए तो यह सालों तक काम कर सकता है। ”

एवी ग्राफ्ट (AV graft)-

इस प्रक्रिया में धमनी और शिराओं को जोड़कर ट्यूब (artificial tube) बनाई जाती है। इस प्रक्रिया में संक्रमण का खतरा एवी फिस्टूला से अधिक होता लेकिन इस सर्जरी के बाद डायलिसिस जल्द शुरु कर सकते हैं।

वस्कूलर एक्सस कैथेटर (Vascular access catheter)- 

जो अधिकतर लोग अपात्कालीन स्थिति में आते हैं यह प्रक्रिया उनके लिए अपनाई जाती है।इसके तुरंत बाद ही डायलिसिस किया जा सकता है। यह प्रक्रिया जटिल है क्योंकि इसमें एक ब्रह्ययपदार्थ को मरीज के गर्दन में डाला जाता

हीमोडायलिसिस आमतौर पर एक सप्ताह में तीन बारऔर एक बार में चार घंटे तक किया जाता है। ज्यादातर हेमोडायलिसिस अस्पताल, विशेषज्ञ के क्लीनिक या डायलिसिस सेंटर में किए जाते हैं। उपचार की समयसीमा आपके शरीर के आकार, शरीर में बेकार पदार्थों की मात्रा और आपके स्वास्थ्य की स्थिति पर निर्भर करती है।

पेरिटोनियल डायलिसिस (Peritoneal dialysis)

पेरिटोनियल डायलिसिस (Peritoneal dialysis) की प्रक्रिया को शुरु करने से पहले विशेषज्ञ मरीज के पेट के निचले हिस्से एक नलिका (Peritonealcatheter) को प्रत्यारोपित करते हैं। कैथेटर मरीज के रक्त को एक झिल्ली के माध्यम से साफ करने में मदद करता है।इस प्रक्रिया के दौरान, एक खास तरल पदार्थ जिसे डायलीसेट कहते हैं वह उसे कैथेटर के माध्यम से पेट में डाला जाता है और उसे कुछ घंटों तक पेट में ही रखा जाता है इस समय में यह बेकार पदार्थों को सोख लेता है और उसके बाद डायलिसेट को पेट से बाहर निकाल लिया जाता है। इस प्रक्रिया में प्रतिदिन तीन से चार बार दोहराया जाता है। पेरिटोनियल डायलिसिस के कई प्रकार हैं जिनमें से कुछ मुख्य हैं-

निरंतर चलने वाला पेरिटोनियल डायलिसिस (Continuous ambulatory peritoneal dialysis,CAPD)

इस विधि के लिए मशीन की जरूरत नहीं होती यह विशेषज्ञों के द्वारा की जाती है। साथ ही इसका विधि को जब किया जाता है जब मरीज जाग रहा हो। यह सबसे सरल प्रक्रिया है इसे घर, दफ्तर तथा स्कूल में भी किया जा सकता है। इसके अलावा इसे ऐसे मरीजो के लिए अपनाया जाता है जो बाहर आ-जा नहीं सकते। यह प्रणाली दिल के लिए अनुकूल होती है।

डायलिसिसकी प्रक्रिया को कब तक जारी रखें

डायलिसिस की प्रक्रिया को लेकर मरीजों के मन में बहुत से सवाल होते हैं जैसे अगर हम डायलिसिस कराएँगे तो इसे कितने दिनों तक जारी रखना होगा आदि। तो जानिए जवाब-

 दरअसल अल्पकालीन किडनी विफलता यानि AKI (Acute Kidney injury) में ,डायलिसिस की प्रक्रिया को तब तक जारी रखना होता है जब तक किडनी की कार्यक्षमता में सुधार नहीं होता। AKI में मूत्र उत्पादन में सुधार, यूरिया, क्रिएटिनिन, पानी, पोटेशियम और एसिड के स्तरहो जाए तो डायलिसिस को रोकसकते हैं। लेकिन अगर इसमें डायलिसिस की जरूरत पड़ती है तो कभी-कभी एक डायलिसिस लेकर कुछ हफ्तों में डायलिसिस की जरूरत पड़ सकती है। प्रत्येक मरीज अलग होता है और उनके रक्त परीक्षण (blood test) के बाद विशेषज्ञ डायलिसिस को रोकने का फैसला कर सकते हैं।

इसके अलावा दीर्घकालीन किडनी विफलता यानि CKD में मरीज को ठीक करने में डायलिसिस का बहुत बड़ा योगदान होता है। इसिलिए यह प्रक्रिया किडनी प्रत्यारोपण तक अपनाई जाती है। अगर किसी कारण से किडनी प्रत्यारोपण नहीं हो पाया तो आजीवन करानी होती है। CKD के मरीज के लिए इस प्रक्रिया को एक सप्ताह में तीन बार करानाहोता है।

डायलीसिस को लेकर रोचक तथ्य :

किडनी की बीमारी में सबसे ज्यादा समय तक डायलिसिस पर जीवित रहने वाले कनाडा के जीन-पियरे ग्रावेल हैं। ये हेमोडायलिसिस पर 47 वर्ष 363 दिन रहे। उन्होंने ऐसा करके 42 साल डायलिसिस पर रहने का पिछला रिकॉर्ड तोड़ा। ग्रावेल ने 24 अक्टूबर 2017 को यह नया रिकॉर्ड कायम किया था। ग्रावेल का यह रिकॉर्ड गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज है।

क्या डायलिसिस प्रक्रिया के नकारात्मक प्रभाव भी होते हैं

डायलिसिस के उपचार को किडनी के मरीजों के लिए जीवनदाता उपचार माना जाता है। असल में यह उपचार इस कार्य को बड़े पैमान पर कर भी रहा है लेकिन जिसके सकारात्मक प्रभाव होते हैं उसके नकारात्मक प्रभाव भी निश्चित तौर पर देखने को मिलते हैं। इसी तरह डायलिसिस जैसे उपचार के भी कई तरह के नकारात्मक प्रभाव (Side effects) और जोखिम हो सकते हैं। क्या हैं डायलिसिस से होने वाले Side effects जानिए-

पेरीटोनियल डायलिसिसके साइड इफेक्ट्स-

  • पेरीटोनियल डायलिसिस  के दौरान पेट की गुहा में लगाया जाने वाला कैथेटर संक्रमण का कारण हो सकता है।
  • डायलिसिस के दौरान डेक्सट्रोज़ के कारणरक्त शर्करा का बढ़ जाना।
  • मोटापा बढ़ना
  • पेट की मांसपेशियों का कमज़ोर हो जाना।
  • पेरिटोनियल डायलिसिस लेने वाले मरीजों को, पेट में हर्निया विकसित होने का खतरा रहता है।इसका कारण है कि डायलेट पेट की दीवार पर अतिरिक्त दबाव डालता है जिससे पेट में गाँठ बनने की आशंका रहती है।

हेमोडायलिसिस के साइड इफेक्ट्स-

  • निम्न रक्तचाप (low blood-pressure)
  • अवसाद (Depression), नींद न आना
  • डायलिसिस के दौरान सुइयों या कैथेटर का बार-बार प्रयोग करने से शरीर में बैक्टीरिया से संपर्क को बढ़ा सकता है। जिससे बैक्टीरिया रक्त में आ जाते हैं तो संक्रमण या सेप्सिस होने का खतरा हो सकता है।

कितना आता है डायलिसिस में खर्च

यदि आपकी किडनी की बीमारीशुरुआती चरण में है, तो डायलिसिस की सहायता से आपकी किडनी और आपकी जीवनशैली में सुधार किया जा सकता है। भारत में हेमोडायलिसिस कराने की लागत 12,000 से 15,000 रुपये प्रति माह के बीच हो सकती है। पेरिटोनियल डायलिसिस करने में 18,000 से 20,000 रुपये प्रति माह के बीच खर्च आ सकता है। अलग-अलग संस्थाओं के हिसाब खर्च में बदलाव हो सकते है।

इसके अलावा डायलिसिस का खर्च देश से राज्य, राज्य से शहरों तक जाते-जाते भिन्न हो हो सकता है। इसका दूसरा विकल्प हैं सरकारी अस्पताल जोकि मुफ्त या बहुत ही कम कीमत पर डायलिसिस करते हैं लेकिन वहाँ पर मरीजों की संख्या कारण स्थिति विपरीत हो जाती है। साथ ही बहुत से धर्मार्थ स्वास्थ्य केंद्र भी देश में मौजूद हैं जो कम कीमत पर डायलिसिस प्रदान करते हैं। भारत में डायलिसिस के एक महीने का खर्च अमेरिका के डायलिसिस के एक सत्र (session) के खर्च से भी कम है।

डायलिसिस की गुणवत्ता का होता है महत्व खर्चे का नहीं

किडनी हमारे शरीर का बहुत महत्वपूर्ण अंग है अगर इसकी कार्यक्षमता में कोई रुकावट या कमी जाती है तो हमारी जान पर जोखिम आ सकता है। अगर आपको अपनी किडनी या उसकी कार्यक्षमता को लेकर कोई शंका है तो कतई लापरवाही न करें तुरंत किडनी के विशेषज्ञ (Nephrologist) को दिखाएँ। डॉक्टर अगर जाँच में किडनी में कुछ कमी पाता है और डायलिसिस उपाय बताता है तो, इलाज उसी से शुरु कराएँ। बीमारी का कारण जानकर उससे निजात पाने और खर्चे से बचने के लिए नीम-हकीमों और अयोग्य डॉक्टरों के पास जाने से बचें।

डायलिसिस एक बहुत गंभीर और जटिल उपचार है इसे बिना विशषज्ञों की सलाह और मदद के करना जान का जोखिम बन सकता है। भारत में  इसका खर्चा लगभग 12,000 से 20,000 (आपकी बीमारी के हिसाब से) प्रतिमाह आता है। हालांकि यह आमजन के लिए बहुत ज्यादा है लेकिन यह समझना जरूरी है कि जान है तो जहान है, और डायलिसिस की प्रक्रिया मरीज की जान बचाती है और जीवन आवधि को बढ़ाती है साथ ही मरीज की जीवनशैली को बेहतर करने मदद करती है।

डायलिसिस एक लंबी और खर्चीली प्रक्रिया है क्योंकि इसमें कई तरह की मशीनों से भी काम होता है। साथ ही अगर आप प्रतिमाह के खर्च से बचना चाहते हैं तो किडनी प्रत्यारोपण एक विकल्प हो सकता है। इसमें आपकी खराब किडनी को सही किडनी से बदल दिया जाता है। हालांकि इसका खर्च 5 से 6 लाख के करीब आता है लेकिन यह स्थायी इलाज है।

डायलीसिस प्रक्रिया को बेहतर रूप से कराने के लिए ध्यान रखें-

  • अगर आप CKD से ग्रसित हैं तो आपको डायलिसिस के लिए तैयार रहना चाहिए। डायलिसिस की शुरुआत विशेषज्ञ की सलाह के तुरंत बाद सही समय पर ही शुरु कर दें और इसमें ज्यादा देरी न करें।
  • डायलिसिस होनी है यह पता लगते ही एवी फिस्टुला तैयार करा लें।
  • डायलिसिस के बारे में डरें नहीं।यह एक जीवनरक्षक प्रक्रिया है और इसकी मदद से हजारों मरीज लंबे और स्वस्थ जीवन जीते हैं।
  • किडनी का विशेषज्ञ (नेफ्रोलॉजिस्ट) की सलाह का पालन करें।
  • परिवार, दोस्तों, नीम-हकीमों और अयोग्य डॉक्टरों  की सलाह लेने से बचें।
  • किडनी फेलियर के मरीजों के लिए उचित आहार का सेवन करें

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